काला जादू - 1 roma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

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काला जादू - 1

काला जादू ( 1 )

हावड़ा के एक अस्पताल के मध्मम आकार के सफेद कमरे में बेड पर एक लगभग 26-27 साल का गेहुँए रंगत का शख्स जिंदगी और मौत से जूझ रहा था , उस बेड के दाईं तरफ एक सफेद मैडिसिन टेबल थी और बाईं तरफ एक काली स्टील की कुर्सी । उस बेड के ठीक पीछे कुछ स्विच लगे हुए थे, उन्हीं स्विच के साथ में एक छोटा सा पारदर्शी आॅक्सीजन ट्यूब लगा हुआ था, उस आॅक्सीजन ट्यूब से एक पतली तार लगी हुई थी जो कि एक पारदर्शी मास्क के साथ लगी हुई थी , वह आॅक्सीजन मास्क उस शख्स के मुँह पर लगा हुआ था , उसके शरीर पर काफी जख्मों के निशान थे जिनमें से कई पुराने थे तो कई नए ,उसके सिर पर एक पट्टी बंधी हुई थी , उसके बाएं हाथ की नस में टेप की सहायता से एक ड्रिप लगाई हुई थी जिसमें एक पतली साइट्रेट ट्यूब ( ग्लूकोज चढ़ाने के लिए इस्तेमाल होने वाली ट्यूब ) लगी हुई थी, वह ट्यूब उसी तरफ लगी हुई स्टील की रोड के ऊपर टंगी एक ग्लूकोज़ की बोतल में लगी हुई थी , जिसमें से ग्लूकोज़ उस ट्यूब की सहायता से उस शख्स की नसों में जा रहा था ।

उसके बेड के पास ही उस लोहे की स्टील चेयर पर एक लगभग 45-50 वर्ष की गोरी रंगत वाली महिला बैठ कर सुबक रही है ,उसने हरे रंग का सूट पहना हुआ था, उनके बाल उनकी कमर तक थे जिसकी उन्होंने चोटी बनाई हुई थी , उनके गोल चेहरे पर लाल रंग की मध्यम आकार की बिंदी लगी हुई थी , और उनके माथे के बीचों बीच सिंदूर लगा हुआ था। वह अपने आँसू रोकने की कोशिश कर रही थी लेकिन वह इसमें नाकामयाब रही, उसके आँसू निरंतर बहे जा रहे थे।

कुछ देर बाद वहाँ एक लगभग 50-55 वर्ष का गेहुँए रंगत का व्यक्ति नीली शर्ट और काली पतलून में आता है, उसके सिर के आगे के हिस्से में बाल नहीं थे, पीछे के हिस्से में भी बहुत कम ही बाल थे , उनके चेहरे पर दाढ़ी मूँछों का नामोनिशान तक नहीं था, उनका चेहरा काफी हद तक बेड पर लेटे उस 26-27 साल के शख्स से मेल खाता था।

उस शख्स को देखकर वह रोती हुई महिला कुर्सी पर से उठी और बोली " क्या कहा डाॅक्टर ने? आखिर क्या हुआ है हमारे अश्विन को? "

" पता नहीं ज्योति हमारे बेटे को आखिर क्या हुआ है .... डाॅक्टरों के हिसाब से तो यह मामूली सा एक्सीडेंट हैं लेकिन मुझे ये मामला कुछ अजीब ही लग रहा है। " उस शख्स ने कहा।

" आकाश, मुझे पता है कि क्या हुआ है हमारे बेटे को ...." ज्योति ने कहा।

" क्या कहना चाहती हो तुम ? " आकाश ने कहा।

" तुम्हें याद है ना कुछ दिनों से अश्विन कुछ अजीब सा व्यवहार करने लगा था? " ज्योति ने बेड पर लेटे शख्स की ओर इशारा करते हुए कहा।

" हाँ तो? "

" जरूर हमारे बेटे के ऊपर किसी ने कोई काला जादू किया होगा। "

" क्या बकबास कर रही हो तुम? यह सब फालतू की बातें हैं, ऐसा कुछ नहीं होता। "

" ये बात बिल्कुल सच है आकाश..... "

" तुम्हें ऐसा क्यों लगता है? "

" क्योंकि जब से वह यहाँ हावड़ा में उस कंपनी में काम करने लगा है तब से ही वह कुछ असामान्य व्यवहार कर रहा था.......... "

______फ्लैशबेक______

कुछ महीने पहले______

सुबह 5-6 बजे के आसपास-

ट्रेन की एक सीट पर एक 26-27 साल का नौजवान बैठ कर कोई किताब पढ़ रहा था, उसने नीली शर्ट और काली पतलून पहनी हुई थी ,उसका रंग गेहूँआ था, उसके बाल छोटे थे और एक सलीके से कटे हुए थे ,उसके शरीर से वह एक कसरती शख्स मालूम पड़ रहा था ,उसके चेहरे से वह एक गंभीर व्यक्तित्व का शख्स लग रहा था, उसकी आँखों पर एक नज़र का चश्मा लगा हुआ था और उन आँखों से वह उस किताब को पढ़ रहा था ।

कुछ देर बाद उसने उस किताब का पन्ना पलटा और आगे पढ़ने लगा, उसे पन्ना पलटे ज्यादा देर नहीं हुई थी कि तभी पतलून की जेब में रखा उसका मोबाइल बजने लगा।

उसने मोबाइल निकाला और देखा, मोबाइल स्क्रीन पर " मम्मी कालिंग " लिखा था।

उस शख्स ने वह काॅल उठाया और कहा " हैलो.... "

"हैलो अश्विन बेटा..... कहाँ तक पहुँचा ?" उस तरफ से आवाज आई।

" मम्मी बस अभी कुछ देर पहले ही आसनसोल जंक्शन निकला है, आठ बजे के आसपास हावड़ा पहुँच ही जाऊँगा। " उस शख्स जिसका नाम अश्विन था उसने कहा।

" बेटा पता नहीं कैसी जगह होगी वो ..... सुना है काला जादू वगैरह भी बहुत होता है वहाँ...... "

" मम्मी ये सब सिर्फ फालतू की बातें हैं.... मैं इन सबमें नहीं मानता..... " अपनी माँ की बात बीच में काटते हुए अश्विन ने कहा।

" फिर भी बेटा हमारे लिए ही सही वो ताबीज़ हमेशा पहन कर रखना। "

अश्विन ने अपने सूटकेस पर नजर डाली और फिर कहा " ठीक है मम्मी मैं हमेशा ही वो ताबीज़ पहन कर रखूँगा। "

" ठीक है बेटा, हावड़ा पहुँच कर फोन करना। "

" ठीक है मम्मी। "उसके बाद अश्विन ने फोन रख दिया और दोबारा सूटकेस की तरफ देखकर कुछ सोचने लगा लेकिन फिर अगले ही पल वह दोबारा अपनी किताब पढ़ने लगा।

कुछ ही देर में हावड़ा जंक्शन आ गया, ट्रेन यहाँ काफी समय तक रूकती है क्योंकि यह उस ट्रेन का आखिरी स्टेशन था।

अश्विन भी आराम से अपना सूटकेस और बाकि का सामान उठाता है और उस ट्रेन से बाहर चल पड़ता है।

लगभग 23.5 हेक्टेयर में फैले हुए उस हावड़ा जंक्शन में कुल 23 प्लैटफार्म बने हुए हैं , उसमें प्लैटफार्म नम्बर 1-16 तक पुराने नए काॅम्पलेक्स में है, जिन्हें टर्मिनल 1 कहा जाता है , वहाँ से पूर्वी रेलवे के लोकल और लम्बी दूरी की ट्रेनें और दक्षिण पूर्वी रेलवे की लोकल ट्रेनें गुजरती है। प्लेटफार्म 17-23 नए काॅम्पलेक्स में उपस्थित है जिसे टर्मिनल 2 कहा जाता है उसमें से दक्षिण पूर्वी रेलवे की लम्बी लम्बी दूरी की ट्रेनें मिलती हैं।

अश्विन की ट्रेन टर्मिनल 2 में आकर रूकी थी , उसको उस जगह का ज्यादा ज्ञान नहीं था , वह बस ट्रेन से उतरे लोगों के पीछे पीछे चल रहा था, ऐसे ही चलते हुए वह उस स्टेशन से बाहर आ गया।

बाहर आकर वह टैक्सी स्टैंड से एक टैक्सी लेता है और उसे एक पते पर चलने के लिए कहता है।

__________________

वह हावड़ा का एक रिहायशी इलाका था, उस रिहायशी इलाके से ठीक पहले एक बड़ी मार्किट वहाँ पड़ती थी वहाँ लाईन से बहुत सी दुकानें और होटल वगैरह थे, उस मार्किट के बाद शूरू होता हैं वहाँ का वह इलाका जिसमें बहुत से लोग रहा करते थे, वहाँ बहुत सी बहुमंजिला बिल्डिंग थी, जिसमें बहुत से फ्लैट बने हुए थे , आसपास हरियाली भी अच्छी खासी थी ।

उनमें से ही एक सफेद सात मंजिला बिल्डिंग के सामने अश्विन की टैक्सी रूकती है।

अश्विन टैक्सी वाले को उसका मेहनाता देकर अपना सामान उठाकर उस बिल्डिंग के बड़े काले गेट के पास लेकर आता है, अश्विन को वहाँ आता देखकर उस बिल्डिंग का बाॅचमेन गेट के पास आकर कहता है " तुमी के? ( कौन हो तुम? )"

"मैं अश्विन हूँ, यहाँ सातवें फ्लाॅर पर पेईंग गैस्ट के तौर पर रहूँगा। " अश्विन ने कहा।

अश्विन की बात उसे इतनी समझ नहीं आई इसलिए उसने कहा " तुमी की बाँग्ला बालातो पारो ना ? ( क्या आप बाँग्ला बोल नहीं सकते? "

" जी नहीं बट मुझे थोड़ी बहुत समझ आ ही जाती है.... " अश्विन ने कहा।

" तुमी एखाने थाकवो आमि एखाना आश्चि.... " यह कहकर वह बाॅचमेन उस बिल्डिंग के अंदर चला गया, कुछ देर बाद वह पीले कुर्ते और सफेद पायजामे में एक 35-40 साल के साँवले शख्स के साथ वहाँ आता है।

वह 35-40 वर्षीय शख्स अश्विन के पास आता है और कहता है " नोमश्कार बोन्धु......आमि देव गांगुली.....आमि एखाने सेक्रेटरी आछे ..... .. तुमी कि आश्विन ? ( नमस्कार दोस्त......मैं देव गांगुली..... मैं यहाँ का सेक्रेटरी हूँ....... क्या तुम अश्विन हो? "

" जी नमस्कार.... हाँ जी मैं अश्विन हूँ। "

" घोष बाबू ने बाताया था आपका बारे में, आईए मैं फ्लैट दिखा देता हूँ आपको.... " कहकर वह शख्स बिल्डिंग के अंदर उपस्थित लिफ्ट की ओर बढ़ने लगता है ,अश्विन भी अपना सामान लेकर उसके पीछे पीछे आने लगता है।

अश्विन का फ्लैट सातवीं मंजिल पर था, वह उस शख्स के साथ वहाँ तक जाता है ,वहाँ आकर वह शख्स चाबी से उस फ्लैट का दरवाजा खोलता है।

वह एक bhk का फ्लैट था, उस फ्लैट को अच्छे से फर्निश किया था । उस फ्लैट में बीचों बीच एक लकड़ी के सोफे रखे हुए थे, उन सोफों के ठीक सामने ही एक छोटी सी टेबल रखी हुई थी, उन सोफों के पीछे ही एक कमरा था जिसका दरवाजा फिलहाल बंद था ,उस कमरे में दाईं तरफ एक ओपन किचन बना हुआ था ।


उस फ्लैट का दरवाजा खोलने के बाद वह शख्स उस फ्लैट की चाबी अश्विन को देते हुए कहता है " आप फ्लैट देखो, हम चलता है आभी..... "

" जी। "

उसके बाद देव वहाँ से चले जाते हैं और अश्विन फ्लैट में आकर सबसे पहले अपनी माँ को फोन लगाता है, " हैलो मम्मी.... "सोफे के पीछे उपस्थित दरवाजे को खोलते हुए अश्विन ने कहा।

" हाँ अश्विन बेटा पहुँच गया? "दूसरी तरफ से आवाज आई।

अश्विन कमरे में आ चुका था, वह बेडरूम था, उस कमरे में बीचों बीच एक डबल बेड लगा हुआ था, उस बेड के बाईं तरफ एक टेबल थी , उस बाईं तरफ वाले टेबल के बगल में एक अन्य दरवाज़ा था जो कि शायद बाल्कनी में जाने के लिए था, उस बेड के दाईं तरफ एक ड्रेसिंग टेबल था। बाईं तरफ ही एक लकड़ी की अलमारी थी, उस अलमारी के बगल में ही उस फ्लैट का बाथरूम था।

" हाँ मम्मी जस्ट अभी पहुँचा....सामान सेट कर रहा हूँ अभी.... " अश्विन ने सूटकेस बेड पर रखकर खोलते हुए कहा।
" बेटा तू ड्यूटी कब से ज्वाइन करेगा? "

" बस मम्मी कल से ज्वाइन करूँगा, आज तो आराम करूंगा थोड़ा सफर करके बहुत थक चुका हूँ। " अलमारी में कपड़े रखते हुए मोबाइल कान में लगाए हुए अश्विन ने कहा।

" अच्छा....खाने का क्या करेगा बेटा? "

" माँ पास में ही बहुत से होटल हैं, वहाँ जाकर खा लिया करूँगा और फिर बाद में टिफिन लगवा लूँगा.... आप चिंता मत करना मैं अपना ख्याल रखूँगा यहाँ। "

" बेटा तू बहुत सीधा है कहीं किसी ऐसी - वैसी लड़की के चक्कर में मत फँस जाना वहाँ। " उसकी माँ ने चिंतित स्वर में कहा।

" फँसना होता तो अब तक फँस चुका होता माँ मैं .... "अश्विन ने मुस्कुराते हुए कहा।

" बेटा वहाँ काला जादू वगैरह भी बहुत होता है... "

" मम्मी मैं अपना अच्छे से ख्याल रखूँगा आप उसकी बिल्कुल फिक्र ना करें, अच्छा मम्मी अब मैं फ्रेश होकर कुछ खाने जाता हूँ ।"

" ठीक है बेटा , बट वो ताबीज़ भूल कर भी मत उतारना। "

" जी मम्मी, अब मैं रखता हूँ। " उसके बाद अश्विन फोन रखकर दोबारा से अपने कपड़े अलमारी में व्यवस्थित ढंग से रखने लगता है, सूटकेस से कपड़े निकालने के दौरान ही उसके हाथों में एक काला ताबीज़ आ जाता है जो कपड़ों के अंदर रखा हुआ था।

ये वही ताबीज़ था जो उसकी माँ ने रखा था, अश्विन वह ताबीज़ हाथ में लेकर कुछ देर देखता है और फिर उसे उसी अलमारी में कपड़ों के बीच में रखकर वापस से सामान सूटकेस से निकालकर सेट करने लगता है।

कुछ देर बाद अपना सारा सामान व्यवस्थित करके अश्विन नहाने चला जाता है, नहाने धोने के बाद वह सफेद टीशर्ट के साथ काली लोअर पहन कर नाश्ता करने के लिए बाहर चला जाता है।

यह सब करते करते उसे शाम के 2-3 बज जाते हैं, चूँकि वह यात्रा करके थक गया था इसीलिए खाना खाकर घर आकर वह सो जाता है ।

जब तक वह उठता है रात हो चुकी थी , वह अपना मोबाइल उठाकर समय देखता है , उसमें 7 : 55 हो रहा था ।

चूँकि उसके बिल्डिंग से होटल पास ही में था इसीलिए अश्विन ने सोचा कि 8:30 या 9 बजे तक खाना खाने चला जाएगा क्योंकि उसे अभी भूख नहीं लगी थी ।

इसलिए वह अब अपना समय बिताने के लिए अपनी किताब लेकर बाल्कनी में आया , वहाँ एक लकड़ी की कुर्सी रखी हुई थी , अश्विन उस कुर्सी पर बैठकर शाम की ताजी हवा में किताब पढ़ने लगा।

कुछ देर बाद उसकी बाईं तरफ की बाल्कनी से एक आवाज़ आई "दादा, तुमी के ? (भाई, तुम हो कौन?) " यह सुनकर अश्विन ने अपनी बाईं तरफ नजर खुमाई, उसने देखा कि एक 24-25 साथ का शख्स जिसका रंग गोरा , लम्बा चेहरा, घने लेकिन छोटे सलीके से कटे हुए बाल, और पतली मूँछें थी उसे मुस्कुराते हुए देख रहा था ,उसने हरी टीशर्ट के साथ काला लोअर पहना हुआ था ।

अश्विन उस शख्स की बातों का कोई जवाब ना देते हुए वापस अपनी किताब पढ़ने लगता है कि तभी वह शख्स दोबारा कहता है " आमि तुमाके साथे कोथा बोलिची.....( मैं आपके साथ बात कर रहा हूँ.....) " इस पर अश्विन दोबारा अपनी किताब छोड़कर उस शख्स की तरफ देखने लगता है, तभी वह शख्स दोबारा मुस्कुराते हुए कहता है " तुमी के? "

अब इससे पहले कि अश्विन कुछ कहता एक 19-20 वर्षीय लड़की उस शख्स के पास आती है , उसका रंग गोरा था और चेहरा गोल था, उसकी बड़ी बड़ी काली आँखें थी जिसमें काजल लगा हुआ था, उस काजल के कारण उसकी खूबसूरत आँखें और भी ज्यादा खूबसूरत लग रही थी , उसके बाल काफी लम्बे थे जो कि उसकी कमर से नीचे तक जाते थे , उन लम्बे बालों की उसने एक चोटी बनाई हुई थी लेकिन फिर भी उसके चेहरे के आगे की तरफ के कुछ बाल छोटे थे जिससे वह वहाँ चल रही हल्की हल्की हवा के कारण उसके चेहरे पर आ रहे थे, उसके चेहरे की मासूमियत में एक खिंचाव था जिसने कि अश्विन का ध्यान अपनी ओर खींचा ।

वह लड़की उस शख्स के पास आकर कहती है " दादा, तुमी एखाने कि कोरची? ( भईया , तुम यहाँ क्या कर रहे हो? "

" आमि ए दादा सोंगे कोथा बोलिची..... ( मैं इन भाई के साथ बात कर रहा हूँ..... )" उस शख्स ने उस लड़की से कहा।

" प्लीज़ दादा अमारा साथे आशो ना.... ( प्लीज़ भईया मेरे साथ चलो ना.....) उस लड़की ने उस शख्स का हाथ पकड़ कर कहा।

" किंतु केना? ( लेकिन क्यों?) उस शख्स ने कहा।

" आशो ना दादा..... ( चलो ना भईया.....) " उस लड़की ने कहा और उसके बाद वह लड़की उस शख्स को वहाँ से लेकर चली गई।

क्रमश:......
रोमा........